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Prabha Khetan Biography प्रभा खेतान का जन्म 1 नवंबर,1942 को हुआ। वो एक ख्याति प्राप्त उपन्यासकार, कवियित्री,नारीवादीचिंतक एवं समाज सेविका थीं। उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एमए की डिग्री हासिल की और ‘ज्यां पॉल सार्त्र के अस्तित्ववाद’ पर पीएचडी की उपाधि हासिल की। वो जब सिर्फ़ 12वर्ष की थीं तभी से वो साहित्य साधना से जुड़ गईं। वो सातवीं में थीं जब उनकी पहली रचना (कविता) ‘सुप्रभात’ में छपी थी। प्रभा खेतान के ज्ञान और कार्य का क्षेत्र अत्यंत विस्तृत था। वो दर्शन,अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, बाजार और उद्योग जगत की गहरी जानकार थीं।
उनकी एक बड़ी कामयाबी यह भी रही कि उद्योग और साहित्य दोनों ही क्षेत्रों में उन्होंने अपने को समान रूप से स्थापित किया। कोलकाता चैंबर आफ कॉमर्स की वे पहली महिला अध्यक्ष रहीं। 1980-89 तक वो साहित्य में काफ़ी सक्रिय रहीं।उनके छः कविता संग्रह अपरिचित उजाले (१९८१), सीढ़ियाँ चढ़ती ही मैं (१९८२), एक और आकाश की खोज में (१९८५), कृ्ष्णधर्मा मैं (१९८६), हुस्नोबानो और अन्य कविताएं (१९८७), अहिल्या (१९८८) और आठ उपन्यास- आओ पेपे घर चलें, तालाबंदी (१९९१), अग्निसंभवा (१९९२), एडस, छिन्नमस्ता (१९९३), अपने -अपने चेहरे (१९९४), पीली आंधी (१९९६) और स्त्री पक्ष (१९९९) तथा दो लघु उपन्यास शब्दों का मसीहा सार्त्र, बाजार के बीच: बाजार के ख़िलाफ़ सभी साहित्यिक क्षेत्र में प्रसिद्ध हुए।
प्रभा खेतान ने नारीवादी चिंतन में अपना एक अलग मुक़ाम बनाया। उनके जीवन के साथ-साथ उनकी रचनाओं में भी इसकी झलक मिलती रही। वो उपन्यास ‘पीली आँधी’ हो या उनकी आत्मकथा ‘अन्या से अनन्या तक’ वो स्त्री के हर पक्ष को सामने लाती रहीं। उनकी आत्मकथा देश में किसी महिला की पहली ऐसी आत्मकथा मानी जाती है जिसमें एक महिला के तौर पर ख़ुद को परखने, देखने और समझने की सबसे अलग दृष्टि है।
प्रभा खेतान ने इस आत्मकथा में कई ऐसी बातों का बेबाक़ी से उल्लेख किया है जिसे पढ़कर लोग हैरान रह गए। एक महिला से आत्मकथा में इतनी ईमानदारी की उम्मीद कम ही लोग करते हैं। उनकी आत्मकथा पहले एक पत्रिका में अंकों में छपती रही और 2007 में इसे किताब के रूप में सामने लाया गया।
फ़्रांसीसी साहित्यकार सीमोन द बोउआ की किताब ‘द सेकेंड सेक्स’ के हिंदी अनुवाद ‘स्त्री उपेक्षिता’ ने प्रभा खेतान को एक अलग मुक़ाम दिया। ये भी कहा जाता है कि इस अनुवाद के द्वारा प्रभा खेतान ने स्त्री विमर्श के एक युग का आरंभ किया।
प्रभा खेतान को उनके साहित्यिक योगदान के लिए महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार व बिहारी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनका लेखन महिलाओं को देखने की एक नई दृष्टि और तर्क लेकर आया, एक सम्पन्न घर से ताल्लुक़ रखने वाली प्रभा खेतान ने स्त्री संसार की संवेदना और चेतना के लिए सर्जनात्मक स्तर पर आधारभूत कार्य किए। साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिये केन्द्रीय हिन्दी संस्थान का ‘महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार’ राष्ट्रपति ने उन्हें अपने हाथों से प्रदान किया। 20 सितम्बर 2008 को प्रभा खेतान ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया लेकिन उनके द्वारा स्त्री विमर्श की जो अलख जगी है वो लगातार आगे बढ़ रही है।
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